भारत और पूरी दुनिया में बढ़ती मरुस्थलीकरण की समस्या 
विलासिता और वैभवपूर्ण जिंदगी जीने की चाह में आज हम सभी अंधी दौड़ में शामिल हैं... अधिक से अधिक पाने की चाह में इंसान इस कदर मशगूल है कि उसे ये भी नहीं पता की वो अपने पीछे क्या छोड़ता चला जा रहा है। जिस प्रकृति ने इस धरती पर जीवन को संभव बनाया, रहने की जगह दी, खुले वातावरण में सांस लेने की सुविधा प्रदान की, फसल पैदा करने के लिए उपजाउ जमीन दी .... उसी प्रकृति और धरती को हम दिन ब दिन नष्ट करते जा रहे हैं। इंसानी गतिविधियों के चलते पर्यावरण को हो रहे नुकसान और जंगलों की अंधाधुंध कटाई और अन्य गतिविधियों से धरती लगातार सिकुड़ती जा रही है.... और उपजाऊ जमीन.. सूखे और मरुस्थल में तब्दील होती जा रही है। आज भारत समेत पूरी दुनिया बढ़ती मरुस्थलीकरण और इसके चलते पैदा हो रही समस्याओं से जूझ रही हैं। मरुस्थलीकरण से लाखों लोग विस्थापित होने को हर साल मजबूर हो रहे हैं।
 
हालांकि भारत सरकार इस मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। इसे लेकर भारत मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के पक्षों के 14वें सम्मेलन (सीओपी14) की मेजबानी करने जा रहा है । आज विशेष के इस अंक में हम बात करेंगे भारत में होने वाले सीओपी 14 सम्मेलन की...जानेंगे भारत समेत दुनिया भर में मरुस्थल की स्थिति...साथ ही बात करेंगे इससे निपटने के उपायों पर सरकार के प्रयास की...
प्रस्तावना: आगामी वर्षों में जल संकट की समस्या और अधिक विकराल हो जाएगी, ऐसा मानना है विश्व आर्थिक मंच का। इसी संस्था की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनियाभर में 75 प्रतिशत से ज्यादा लोग पानी की कमी की संकटों से जूझ रहे हैं। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। भूमिका : प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब 1600 जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि विश्व में करीब 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं। निष्कर्ष: ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है। इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतिपूर्ण साबित होंगे।
विलासिता और वैभवपूर्ण जिंदगी जीने की चाह में आज हम सभी अंधी दौड़ में शामिल हैं... अधिक से अधिक पाने की चाह में इंसान इस कदर मशगूल है कि उसे ये भी नहीं पता की वो अपने पीछे क्या छोड़ता चला जा रहा है। जिस प्रकृति ने इस धरती पर जीवन को संभव बनाया, रहने की जगह दी, खुले वातावरण में सांस लेने की सुविधा प्रदान की, फसल पैदा करने के लिए उपजाउ जमीन दी .... उसी प्रकृति और धरती को हम दिन ब दिन नष्ट करते जा रहे हैं। इंसानी गतिविधियों के चलते पर्यावरण को हो रहे नुकसान और जंगलों की अंधाधुंध कटाई और अन्य गतिविधियों से धरती लगातार सिकुड़ती जा रही है.... और उपजाऊ जमीन.. सूखे और मरुस्थल में तब्दील होती जा रही है। आज भारत समेत पूरी दुनिया बढ़ती मरुस्थलीकरण और इसके चलते पैदा हो रही समस्याओं से जूझ रही हैं। मरुस्थलीकरण से लाखों लोग विस्थापित होने को हर साल मजबूर हो रहे हैं।
हालांकि भारत सरकार इस मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। इसे लेकर भारत मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के पक्षों के 14वें सम्मेलन (सीओपी14) की मेजबानी करने जा रहा है । आज विशेष के इस अंक में हम बात करेंगे भारत में होने वाले सीओपी 14 सम्मेलन की...जानेंगे भारत समेत दुनिया भर में मरुस्थल की स्थिति...साथ ही बात करेंगे इससे निपटने के उपायों पर सरकार के प्रयास की...
प्रस्तावना: आगामी वर्षों में जल संकट की समस्या और अधिक विकराल हो जाएगी, ऐसा मानना है विश्व आर्थिक मंच का। इसी संस्था की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनियाभर में 75 प्रतिशत से ज्यादा लोग पानी की कमी की संकटों से जूझ रहे हैं। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। भूमिका : प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब 1600 जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं, जबकि विश्व में करीब 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं। निष्कर्ष: ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है। इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतिपूर्ण साबित होंगे।


 
 
 
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