मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ।
हेलो दोस्तों मेरे अंदर कुछ ऐसे जस्बात हैं जो आज मैं आप को बताना चाहता हूँ। ये कहानी घर के बड़े लड़के की हैं जो आज मैं आप को बताना चाहता हूँ।
तो बात कुछ यूँ हैं की मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,
थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ ,इसी लिए घर छोड़ कर निकल चूका हूँ वरना गांव बस्ती में मेरा भी एक मकान हैं।
दो छोटी बहन हैं एक छोटा भाई भी हैं ,
उनके सरपरस्ती का जिम्मा कुछ मुझ पर भी हैं ,
चूँकि पापा की उम्र होनी लगी हैं ,पर घर का चूल्हा -चौका तो चलना ही हैं ,
बस यही कुछ बात समझ चूका हूँ ,इसी लिए घर छोड़ कर निकल चूका हूँ ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ।
तक़रीबन उमर 14 थी जब मैंने घर की दहलीज पार किया था ,
और दुनिया देखि भी नहीं थी जब मैंने काम करना सुरु किया था,
पर धक्के खाने की हिम्मत न थी पर खुद को समझा लिया था की ,
बेटा आज तू तपेगा नहीं तो कल घर में चूल्हा जलेगा नहीं ,
और कुछ लोग जिन्दा हैं तेरे अशरे पे अगर तू आज बढ़ेगा नहीं तो कल उनका सवरेगा नहीं ,फिर बहन की शादी भी हैं ,भाई की जेब खर्ची भी हैं ,फिर त्यौहार भी आने वाले हैं
और मम्मी की दवाई भी हैं बस यही कुछ चंद बाते समझ चूका हूँ
इसी लिए घर छोड़ कर निकल चूका हूँ ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ।
न मम्मी से मिल पाता हूँ ,न बहनो की राखी बांध पता हूँ मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,
मेरे त्योहार बड़े बेरौनक होते हैं ,चार दीवारी एक आईना हैं घर में बस उनसे बक-बक्का लेता हूँ ,खुद के सवालो का जबाब खुद ही दे देता हूँ ,
अकेलेपन में लिपटा हूँ मैं ,सब गम छुपा लेता हूँ ,
जब फ़ोन घर से आता हैं ,तो कुछ अटपटे किस्से सुना देता हूँ ,
सब दर्द भरे दस्ता भुला चूका हूँ ,सब गिले सिकवये मिटा चूका हूँ ,
घर को आबाद करने निकला हूँ ,खुद बेघर हो चूका हूँ ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ जो घर छोड़ कर निकल चूका हूँ ,
बावर्ची खाने से नफरत थी मुझे ,पर आज तो टेढ़ी-मेडी रोटी भी पका लेता हूँ ,
खाने पर नखरे करने वाला आज मैं कच्चा -पक्का कुछ भी खा लेता हूँ ,
पर अफ़सोस क्या करू ये तो दस्तूर हैं दुनिया का,बस यही कह कर दिल को बेहला लेता हूँ ,वरना बहुत खुसनसीब होते हैं वो लोग जो मिलकर साथ रहते हैं ,
मुझ जैसे इस शहर में हज़ारो रहते हैं ,कुछ अस्पतालों में दम तोड़ देते हैं ,तो कुछ बुखार में तपते रहते हैं ,अपना किसे कहे वो तो गांव में रहते हैं।
इस लिए मैं एक बात कहना चाहता हूँ अगर पड़ोसी हो कोई तुम्हरा मुझ जैसा तो उसे अपना बना लेना ,घर में न सही तो दिल में जगह दे देना ,जो बरसो से माँ के खाने को तरस रहा हैं कभी मैफिल सजे तो उसे भी बुला लेना ,वो आसमान की उड़ानों में उड़ना चाहता हैं ,हो सके तो उसके पंखो में हौसला लगा देना ,फिर वो जहाँ भी जायेगा वो तुम्हे ही याद करेगा ,
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
आशा करता हूँ की आप को ये कहानी पसंद आएगी ,
अगर पसंद आई तो कमेंट करके बताओ की आप को घर से बिछड़े कितने दिन,महीने साल हो गए हैं
हेलो दोस्तों मेरे अंदर कुछ ऐसे जस्बात हैं जो आज मैं आप को बताना चाहता हूँ। ये कहानी घर के बड़े लड़के की हैं जो आज मैं आप को बताना चाहता हूँ।
तो बात कुछ यूँ हैं की मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,
थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ ,इसी लिए घर छोड़ कर निकल चूका हूँ वरना गांव बस्ती में मेरा भी एक मकान हैं।
दो छोटी बहन हैं एक छोटा भाई भी हैं ,
उनके सरपरस्ती का जिम्मा कुछ मुझ पर भी हैं ,
चूँकि पापा की उम्र होनी लगी हैं ,पर घर का चूल्हा -चौका तो चलना ही हैं ,
बस यही कुछ बात समझ चूका हूँ ,इसी लिए घर छोड़ कर निकल चूका हूँ ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ।
तक़रीबन उमर 14 थी जब मैंने घर की दहलीज पार किया था ,
और दुनिया देखि भी नहीं थी जब मैंने काम करना सुरु किया था,
पर धक्के खाने की हिम्मत न थी पर खुद को समझा लिया था की ,
बेटा आज तू तपेगा नहीं तो कल घर में चूल्हा जलेगा नहीं ,
और कुछ लोग जिन्दा हैं तेरे अशरे पे अगर तू आज बढ़ेगा नहीं तो कल उनका सवरेगा नहीं ,फिर बहन की शादी भी हैं ,भाई की जेब खर्ची भी हैं ,फिर त्यौहार भी आने वाले हैं
और मम्मी की दवाई भी हैं बस यही कुछ चंद बाते समझ चूका हूँ
इसी लिए घर छोड़ कर निकल चूका हूँ ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,थोड़ा समझदार हूँ ,थोड़ा जिम्मेदार हूँ।
न मम्मी से मिल पाता हूँ ,न बहनो की राखी बांध पता हूँ मैं घर का बड़ा लड़का हूँ ,
मेरे त्योहार बड़े बेरौनक होते हैं ,चार दीवारी एक आईना हैं घर में बस उनसे बक-बक्का लेता हूँ ,खुद के सवालो का जबाब खुद ही दे देता हूँ ,
अकेलेपन में लिपटा हूँ मैं ,सब गम छुपा लेता हूँ ,
जब फ़ोन घर से आता हैं ,तो कुछ अटपटे किस्से सुना देता हूँ ,
सब दर्द भरे दस्ता भुला चूका हूँ ,सब गिले सिकवये मिटा चूका हूँ ,
घर को आबाद करने निकला हूँ ,खुद बेघर हो चूका हूँ ,
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ जो घर छोड़ कर निकल चूका हूँ ,
बावर्ची खाने से नफरत थी मुझे ,पर आज तो टेढ़ी-मेडी रोटी भी पका लेता हूँ ,
खाने पर नखरे करने वाला आज मैं कच्चा -पक्का कुछ भी खा लेता हूँ ,
पर अफ़सोस क्या करू ये तो दस्तूर हैं दुनिया का,बस यही कह कर दिल को बेहला लेता हूँ ,वरना बहुत खुसनसीब होते हैं वो लोग जो मिलकर साथ रहते हैं ,
मुझ जैसे इस शहर में हज़ारो रहते हैं ,कुछ अस्पतालों में दम तोड़ देते हैं ,तो कुछ बुखार में तपते रहते हैं ,अपना किसे कहे वो तो गांव में रहते हैं।
इस लिए मैं एक बात कहना चाहता हूँ अगर पड़ोसी हो कोई तुम्हरा मुझ जैसा तो उसे अपना बना लेना ,घर में न सही तो दिल में जगह दे देना ,जो बरसो से माँ के खाने को तरस रहा हैं कभी मैफिल सजे तो उसे भी बुला लेना ,वो आसमान की उड़ानों में उड़ना चाहता हैं ,हो सके तो उसके पंखो में हौसला लगा देना ,फिर वो जहाँ भी जायेगा वो तुम्हे ही याद करेगा ,
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
वो घर का बड़ा लड़का हैं वो बड़ा नाम करेगा
आशा करता हूँ की आप को ये कहानी पसंद आएगी ,
अगर पसंद आई तो कमेंट करके बताओ की आप को घर से बिछड़े कितने दिन,महीने साल हो गए हैं

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