बाबरी मस्जिद और अयोध्या विवाद -पूरा विश्लेषण

 बाबरी मस्जिद और अयोध्या विवाद -पूरा विश्लेषण 

अयोध्या विवाद क्या हैं ?

हिन्दू धर्म में भगवन राम की अहम् भूमिका मानी जाती हैं। भगवान् राम अयोध्या के निवासी थे वंहा पर भगवान् राम ने मध्यकालीन में राज भी किया बाद में चलकर अयोध्या में उनकी एक मंदिर बनाई गई जिसे लोग रामलला या जन्मभूमि  के नाम से जानते हैं। रामलला का मतलब हैं राम भगवान् की बचपन दृश्य।

अयोध्या उत्तर प्रदेश के सरयू नदी के  किनारे बसा हुआ एक शहर हैं। यह शहर फैज़ाबाद से बिलकुल सट्टा हुआ हैं।
मैं आप को एक तस्वीर के माध्यम से बताता हूँ की अयोध्या कैसा हैं




 1528 के मध्य काल में एक सैनिक मीर बाक़ी नाम था उसका  जो की मुग़ल साम्राज्य बाबर का सैनिक अयोध्या में आया और उसने वँहा पर मस्जिद बना दिया इस लिए उसको बाबरी मस्जिद के नाम से भी जाना जाने लगा।

ये एक सामाजिक ,धार्मिक ,राजनितिक प्रश्न हैं एक वंहा पर मंदिर था या मस्जिद या फिर मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाया गया। ये पूरा मामला अयोध्या का विवाद हैं।
इस मंदिरऔर मस्जिद  का झगड़ा ही अयोध्या का विवाद हैं।

लगभग 100 साल पहले बाबरी मस्जिद कुछ इस तरह नजर आती थी।


सुरवाती झगडे  का कारण क्या था ?

पहले जब मस्जिद बानी  मुस्लिम्स तो मस्जिद में जा कर इबादद करते थे लेकिन जो हिन्दू थे वो मस्जिद के बहार एक चबूतरे पर ही पूजा अर्चना करते थे। इसे कहते हैं "राम चबूतरा , ये चबूतरा मस्जिद के बिलकुल बाहर स्थित हैं। 

1853 में कुछ लोकल झगडे हुए जिससे अंग्रजो ने एक फेंस या दीवार बना दिया ताकि लोगो में झगड़ा न हो। फेंस एक तरफ था मस्जिद और दूसरी तरफ था चबूतरा 
मुस्लिम अपनी इबादद करते और हिन्दू अपनी पूजा अर्चना करते। 


1885 चबूतरे के महंत रघुबर दास ने फैज़ाबाद ने डिस्ट्रिक कोर्ट में एक अर्जी दी की जो चबूतरा है वंहा पर हमे मंदिर बनाने की परमिशन दी जाये। लेकिन फैज़ाबाद कोर्ट ने मना  कर दिया। कोर्ट ने कहा की लगभग 350 साल हो गए मस्जिद बने हुए इसलिए कोर्ट ने परमिशन नहीं दिया।
अर्जी रिजेक्ट होने के 70 -75 साल बाद एक और घटना हुए 22/23 1949 डिसम्बर की रात 
कुछ लोगो ने मस्जिद में जबरदस्ती जा कर कुछ मुर्तिया रख दिए और बताया की वह पर रामलला प्रकट हुए हैं। जब मुस्लिम पच्छो ने इसकी शिकायत की तो वंहा के डीएम के के  नायर ने कहा की अगर मूर्ति हटाई गयी तो बहुत बड़ा झगड़ा हो सकता हैं इसलिए वंहा के एडमिनिस्ट्रेटर ने वो जगह अपने अंडर में ले लिया और बोलै गया की को भी वंहा नहीं जायेगा।
जैसे ही ये सब हुआ था वंहा के महंत रामचंद्र दास ने कोर्ट से अपील की वंहा पूजा करने की अनुमति दी जाये लेकिन कोर्ट ने ये अर्जी को मना  कर दिया। मैं आप लोगो को एक तस्वीर दिखाता आप सब समझ जायेंगे।





जैसा कि आप सब इस तस्वीर में देख सकते हैं की राम चबूतरा बिलकुल मस्जिद के बहार हैं और जंहा रामलला प्रकट हुए थे उसे भी आप देख सकते हैं।

1959 में निर्मोही अखाडा ने राम चबूतरा का जो साइट हैं उसे लेने के लिए एक और केस फाइल किया।
और वंही सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने भी कहा की हिन्दुओ को वंहा पूजा करने और भगवान् की मूर्तियों को हटाने के लिए कोर्ट से अपील किया।

अयोध्या विवाद कैसे बना राजनितिक मुद्दा ?

1984 में विश्व हिन्दू परिषद् ने एक संसद बुलाई उस संसद का नाम था धर्म संसद  उसमे उन लोगो ने कहा की जो अयोध्या का विवाद है उसको राजनितिक तौर पर उठाना चाहिए 
इसमें भाजपा के कई बड़े नेता शामिल हुए जैसे की लालकृष्ण अडवाणी ने जोरो सोरो से इस मुद्दे को आगे बढ़ाया। 
उस समय भाजपा का गठन हुआ ही था  की 1982 में जन संघ से हटकर अलग पार्टी बनाई गई। ऐसे माहौल में 1986 एक केस होता हैं शाह बनो केस मैं आप को बताता हूँ की क्या था एक मुस्लिम महिला को तलाक़ के बाद एक भरण पोषण भत्ता दिया जाता है वो कांग्रेस सरकार ने फिक्स कर दिया। लेकिन मुस्लिम संघटनो ने इसका विरोध किया। 
फिर भाजपा ने विरोध किया की कुछ धर्मनिरपेछ लोगो के कहने से कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया। उस समय कांग्रेस बहुत प्रेशर में थी। ऐसा लोग कहते हैं की राजीव गाँधी ने हिंदुयों को खुश करने के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए। हुआ कुछ ऐसा की फैज़ाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एक फैसला सुनाया की जो मंदिर के द्वार हैं वो खोल दिए जाये और १ घंटे के अंदर ही द्वार खोल दिए गए। 

थोड़ मैं आप को केस के बहार ले करके चलता हूँ हमारे भारत में कोर्ट के फैसले आने के महीनो बाद भी उस फैसले पर अमल नहीं किया जाता हैं। लेकिन मंदिर का ताला तो 1 घंटे के अंदर की खुल गया।
और ये जोई टाला खोला गया था ये दुरदरसन पर टेलीकास्ट हुआ था। तो ये तुस्टीकरण की राजनीति थी या नहीं ये आप को तै करना हैं ?

इसके बाद जो हुआ जगह २ मुस्लिम ने दंगे फसाद किये और एक समिति बनाई गई
जिसका नाम था बाबरी मस्जिद एक्शन समिति।

तो 80 के दसक में ये बाबरी मस्जिद हैं आप देख सके हैं।


1986 में ये मंदिर हिन्दुओं के लिए खोल दिया गया था। जो ये हिंदुत्व की राजनीती हैं ये बहुत बढ़चढ़ कर आई जैसे की विश्व हिन्दू परिषद् और संघ परिवार के और शद्श्य भी हैं और भाजपा ने इसे राजनितिक तौर पर एक मुद्दा  बना दिया पहले ये क़ानूनी केस था और धार्मिक मुद्दा था लेकिन भाजपा ने इसे अपने राजनितिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया। 
इसके लिए vhp ने एक कैम्पियन सुरु किया और जिसे नाम दिया गया "कारसेवा "


जो केस था उसका फैसला अभी आया नहीं था लेकिन vhp ने बोलै की मंदिर बनाने के लिए आप जो कुछ भी दान करे वो ाचा हैं या फिर आप ईंट लेकर आयो या शिल्पकारी में हाथ बटाओ तो लोगो ने अपनी कार सेवा चालू कर दी। राम जानकी रथ यात्रा का एक कार्यक्रम शुरू किया गया। और फिर बजरंग दाल का गठन भी उसी समय हुआ। 



बजरंग दाल या vhp का युथ विंग हैं। ये दाल बनाने का उद्देश्य ये था की रामजानकी रथ यात्रा को प्रोटेक्ट करे। और उसके बाद शिला पूजन का शिलान्याश किया गया पुरे देश से राम नाम लिखी ईंटे लोग लाने  लगे। 



अगस्त 1989 में लखनऊ बेंच ऑफ़ अल्लाहाबाद कोर्ट ने एक फैसला सुनाया की ये मुद्दा है हम इसपर सुनवाई करेंगे सब केस को एक साथ लेकरके लेकिन जैसा है अभी माहौल वैसे बनाये रखे। किसी को भी परमिशन नहीं हैं विवादित जगह पर जाने के लिए। 


लेकिन vhp  ने नवंबर 1989 में एक शिलान्याश कार्यक्रम का आयोजन किया जो की बिलकुल ही विवादित जगह के पास में ही था। जिसके कारण पुरे देश में दंगे फसाद होने लगे और उसमें लगभग 1000 से ज्यादा लोगो  मौत हो गई। उसके बाद दिसंबर 1989 में जनरल इलेक्शन हुए और राजीव गाँधी की सरकार चली गई और उस समय वीपी सिंह की सरकार बन गई जिसमे बहुत सी पार्टिया शामिल थी उसमे से एक भाजपा भी थी। 1984 का जब चुनाव हुआ था तब भाजपा को सिर्फ 2 सीट मिली थी लेकिन जब भाजपा ने अयोध्या विवाद को अपना राजनितिक मुद्दा बनाया तब भाजपा को 85 सीट मिले। 


अभी आगे।  ----------



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